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खुदेणु पराणु मेरु


खुदेणु पराणु मेरु


कु हूल मी धेय लगाणु
कु हुलु मी थे याद कनु

खुदेणु पराणु मेरु
किले आच छिब्लाट कनु

रै रै कि मेर सोर थे
कु हुलु रै आच जगवाल्णु

खुदेणु पराणु मेरु
किले आच खिपराट कनु

अंग्वाल आच मेरे कू बोटणू
ये जिकोड़ मा च कू हेरनू

खुदेणु पराणु मेरु
किले आच सरपराट कनु

बटुली कि ध्यास आच कु ल्गाणु
आँखों धार थे मेर कू बोगाणू

खुदेणु पराणु मेरु
किले आच किले आच सर सरा णू

खुदेणु पराणु मेरु ……………।

एक उत्तराखंडी

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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