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आसन है कितना


आसन है कितना

मै लगाने लगा जग पर इल्जाम
मेरा दमन ही ना रहा अब पाक सामान

उड़े दो चार बादल मेरी तरफ ऐसे
मैंने थोड़े बरसाकर कर दिये उसे तेरी ओर

उंगली उठाना आसान था मेरे लिये
ना सोचा ना समझ मैंने किसके लिये

कितना अंधेरा घना बड़ा वो मेरी ओर
सबने आज कह दिया की तू ही है चोर

जल्द बाजी मची है बस तू बिजी मै भी बिजी हूँ
सोचता कौन कितना बस मिला दिया स्वर से स्वर

आसन है कितना अब हमे बेवकूफ बनान
किसी के सफेद रंगों में झट से काला दाग लगाना

भूल तो सब जाते हैं वो काले दाग लगाकर
हाथों के हथेली कालिख उनके भी छुट जाती है

मै लगाने लगा जग पर इल्जाम
मेरा दमन ही ना रहा अब पाक सामान

एक उत्तराखंडी

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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