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क्ख्क णी जणू रै


क्ख्क णी जणू रै

भूल णी जाणू रै
ये भुल्हा अपरा गढ़ देशा थे
भूल णी जाणू रै

दूर जणू छे
जा लेदी भुल्हा जख जाणू छे
पर कबी टैम मिली छुच
यख बी अलेदी
छेंच तेरु यख अबी बी
ऊ बाटों छोडीयूँ

बिसरी णी जाणू रै
ये भुल्हा अपरी बोई भाष थे
बिसरी णी जाणू रै

क्दगा मीठी
क्दगा अपरी
क्नुड़ी घुलदी
अपरी गड़ बोळी
ईं भाष थे अपरू बच्चों तू सिखेदे
ऊँ थे बी कबी
अपरू गढ़ देश तू दिखे दे

परती की आणू रै
ये भुल्हा अपरा गढ़ देशा मा
परती की आणू रै

सब मिली कि रोंला
छुच थोड़ा थोड़ा खोंला
थिच्युन प्याज चटनी
ठंडो मिठो पाणी पिंवोला
देव भूमि सपूत हम
आपरी भूमी संजोला

क्ख्क णी जणू रै
ये भुल्हा अपरा गढ़ देशा छोडीकि
क्ख्क णी जणू रै

एक उत्तराखंडी

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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