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बस बाँध रखा है


बस बाँध रखा है 

बस बाँध रखा है 
अपने को मैंने अपनों के लिये 
बस बाँध रखा है 
अपने को

कल तक बहती नदी था मैं
अब थाम बैठा हूँ उस आवेग को मै
बस बाँध रखा है
अपने को

रूठ ना जाये टूट ना जाये वो
जिसे संभाल कर रखा था इस आंचल में
बस बाँध रखा है
अपने को

मै भी उड़ सकता था नील गगन में
पंख काट रखा है मैंने अपने से
बस बाँध रखा है
अपने को

बस बाँध रखा है
अपने को मैंने अपनों के लिये
बस बाँध रखा है
अपने को

एक उत्तराखंडी

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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