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कै का


कै का

कै का खैल मा
खोई छो मी
वै कु ना कुई रंत च
ना क्वी च रैबार

किले जियूं मेरु क नू हुऌ
वै थे फिर बी याद
कै का खैल मा
खोई छो मी

क्ख्क बिरडी गै ऊ
क्ख्क हर्ची ग्याई ऊ
जै का नौऊ दगडी
मेरु नौऊ जुड़ी

जै बान सात फेर लगी
क्ख्क बौडी ग्याई ऊ
यकुली कै कि मी ये पाड़ा मा
क्ख्क छोड़ी ग्याई ऊ

कै का खैल मा
खोई छो मी
वै कु ना कुई रंत च
ना क्वी रैबार

एक उत्तराखंडी

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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