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वो प्रकाश किरण


वो प्रकाश किरण

वो प्रकाश किरण
एक सीधी रेखा से गुजरती
प्रकाशित करती जाती
अनगिनत वो अँधेरी संकरी गली
वो प्रकाश किरण ..............

पर वो जाती जंहां भी
चमक उठता वो उसी पल
कैसे था वो स्पर्श और
कैसा था वो घर्षण
वो प्रकाश किरण …………

बहते जाते साथ साथ उसके
साथ कई प्रकाश दीप
ना किसी में करते अंतर
ना ही वो किसी में करते भेद
वो प्रकाश किरण …………

देख मानव अब तू
प्रकाश की इन आँखों से देख
छांट दे वो तू अंधेरा अज्ञान
प्रकाश कि तरह अब विचरण कर

वो प्रकाश किरण
एक सीधी रेखा से गुजरती
प्रकाशित करती जाती
अनगिनत वो अँधेरी संकरी गली
वो प्रकाश किरण …………।

एक उत्तराखंडी

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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