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बस वो चेहरा


बस वो चेहरा

झिलमिल झिलमिल
वो झलकता ही रहा
नूर बनकर वो
टिप-टिप टपकता ही रहा

छल-छल
वो छलकता ही रहा
वो चेहरा कुछ
मुझसे कहता ही रहा

मदहोशी
छायी ऐसे मुझको
ऋतू प्रेम की
आयी हो जैसे

पतझड़ का अब
दमन सरकने लगा
मौसम जवानी का
अब महकने लगा

गुल खिला मेरे
उस दिल बाग़ में
भौंरा बन दिल
अब मचलने लगा

नजरों का खेल
आँखों आँखों द्वारा चलने लगा
अब तक ये दिल था मेरा
किसी और का अब होने लगा

क्या हुआ था मुझे
और क्या होने लगा
गर्महाट हुयी तन में और
इश्क बुखार चढ़ने लगा

झिलमिल झिलमिल
वो झलकता ही रहा
नूर बनकर वो
टिप-टिप टपकता ही रहा

छल-छल
वो छलकता ही रहा
वो चेहरा कुछ
मुझसे कहता ही रहा

एक उत्तराखंडी

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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