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मेरा ध्यान


मेरा ध्यान

खेल दिवस दुखी हुआ
आज वो उदास हुआ
क्या बोलों कुछ ना सूझे आज
दिल का उबाल
रचना का रूप ले डूब गया
गुब्बार पानी से भरा था
वो आँखों से फुट गया
बस कहना है आज इसे
पिछला घुल सा गया
अगला दांत दिखाकर हंस सा गया
गोलाकार मैदान के सामने
आयताकार मैदान हार गया
बैट कि बल्ले बल्ले
हॉकी के हाथ से फिर वो छूट गया
यथार्थ की चका-चौंद
इतिहास फिर लुप्त हो गया
उठी मांग थी बार-बार
भूले इतिहास सजाने कि
नेताओं कि ठोकरों ने
उन्ह ल्हमों को भुला दिया
चंद के हाथों से
वो रत्न फिर छूट गया
ध्यान का किसीको
ना अब ध्यान रहा
सब सचिनमय हो गया
मै भूल गया था
अब मेरा भारत तो
अब इंडिया हो गया

एक उत्तराखंडी

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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