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मैं अधूरा हुआ


मैं अधूरा हुआ

एक एक कर के मै उससे जब अधूरा हुआ
चला मेरा था ,मेरा मुझसे वो जब होके जुदा
आँखें भरा आयी थी या वो नमकीन था समा
खारा खारा मेरा तन-बदन जाने क्यों होने लगा … २

गाँव मेरा मुझसे अब था दूर होने लगा
आँखों का पानी खुद ब खुद अब रोने लगा
कोशिश कि थी मैंने उसे रोकने कि मगर
हालात ने उसके उसको ना ऐसा करने दिया … २

चला पड़ा अपनी रहा वो उसकी वो मंजिल नयी
बंजारा मन बनकर उसका वो कारवां ले चल पड़ा
यादों के समंदर में वो खोया जब इस तरह
रूठा गाँव उसका एक एक करके उससे अधूरा होने लगा… २

माँ बाप मेरे वो पगडंडी वो मेरे गाँव की
वो मुझसे टूटी नदी उस बूढ़े पेड़ के छाँव की
रस्सी से मैंने उसे अपने हाथों से बांधा था कभी
दो पैंसे के मोह ने मुझसे वो बांधा झूला खोल ही दिया … २

अब मैं बैठा हूँ दूर उससे हजारों मील दूर कंहीं
अब भी लगता है मुझे वो आस पास है मेरे यंही कंहीं
खोजता हूँ अंधेरों और उस सपनो में अक्सर मैं उसे
हाथ में कुछ ना आता मेरे बस, आते हैं वो चंद सिक्के मेरे … २

इतनी दूर जाकर अब मै सोचता हूँ मैंने क्या पाया
क्यों अपना देश वो मेरा प्यारे गाँव को मैंने बिसराया
अब भी आना चाहों मैं पर मै ना वापस आ पाऊँ
मोह ने मेरे ऐसा जकड़ा हुआ,गाँव मेरा मुझसे रूठा हुआ है … २

एक एक कर के मै उससे जब अधूरा हुआ
चला मेरा था ,मेरा मुझसे वो जब होके जुदा
आँखें भरा आयी थी या वो नमकीन था समा
खारा खारा मेरा तन-बदन जाने क्यों होने लगा … २

एक उत्तराखंडी

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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