तू अब खो जाता
उस कोने से लगा हुआ
क्या खोने में लगा हुआ
राम रहीम चोला था पहना
क्या समझा वो,क्यों चलता तनकर
उस कोने में मिला शायद
भेद गहरे जीवन का खुला शायद
फिर भी समझ ना पाता
पाप परछाई संग बड़ जाता है
गंगा नहाकर ना धो सका
फिर भी मैला रहा सब खो दिया
उस पानी को व्यर्थ कर
झम झम से तू क्या पाता
एक दिशा वो बस तेरी
उस कोने में तू समा जाता
प्रकाशा से वो विफल अब
अंधकार में बस तू अब खो जात
तू अब खो जाता
तू अब खो जाता
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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