थोड़े आंसूं से
थोड़े आंसूं से आँखों को भिगाया जाये
रोते हुये को क्यों ना हंसाया जाये
दो दिन कि दुनिया, दो दिन कि दुनिया
बहती नदिया क्योँ ना इसे समंदर से मिलाया जाये
थोड़े आंसूं से आँखों को भिगाया जाये
उड़ते बादल को पकड़ा जाये ,उड़ते बादल को पकड़ा जाये
नन्हे कदमों को क्यों ना उस पर्वत के शिखर पर बढ़या जाये
रोते हुये को क्यों ना हंसाया जाये
भूखे को खाना खिलाये जाये,भूखे को खाना खिलाये जाये
व्यर्थ ना फेंको उस अन्न को चलो किसी कि भूख मिटायी जाये
थोड़े आंसूं से आँखों को भिगाया जाये
प्यासा है हर मन यंहा,प्यासा है हर मन यंहा
चलो एक पेड़ लगाकर उस बादल से पानी धरा पर लाया जाये
रोते हुये को क्यों ना हंसाया जाये
थोड़े आंसूं से आँखों को भिगाया जाये
रोते हुये को क्यों ना हंसाया जाये
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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