वो मेरी खोली
दस बाय दस कि वो मेरी खोली
वो मेरा जीवन , सुन जा मेरी बोली
वो मेरी खोली मेरी हमजोली
एक ही खिड़की एक ही वो दरवाज
उस से ही होता मेरा बाहर देखना,आना जाना
वो मेरी खोली मेरी हमजोली
कुछ ना था छुपाने को बस सब कुछ था दिखाने को
चार कोना चार दिवारी पड़ी ,वंही वो यांदें पुरानी
वो मेरी खोली मेरी हमजोली
बचपन बिता बित गयी वो आधी जवानी
ना मिट सकी वो बीते दिनों कि कहानी
वो मेरी खोली मेरी हमजोली
खोली नंबर था तेरह वो मेरा
दस बाय दस गरीब में था वो प्रेम गहरा
वो मेरी खोली मेरी हमजोली
टूटी फुट गयी किसी कोने में अकेले पड़ी
वो खोली मेरी दो बेड रूम कि चाह में खो गयी
वो मेरी खोली मेरी हमजोली
दस बाय दस कि वो मेरी खोली
वो मेरा जीवन , सुन जा मेरी बोली
वो मेरी खोली मेरी हमजोली
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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