पहली बारिश … पहला प्रेम …
एक दोपहर ऐसे ही मै
लगभग वो मई का महीना था
मै खिड़की के पास पढ़ते बैठा था
इतने में पूर्वा आभास हुआ बरसात का
हावा में ठंडक बढ़ने से
गर्मी कि अब सुस्ती कम हुयी
उष्ण से तपते सूर्य कि
अब कृष्ण्मेघों ने अच्छी क्लास ली
उच्चदाब हवा का शोर था
फिर वो मेरे बालों से खेलने लगा
थोड़े समय बाद कुछ स्पर्श हुआ
इसका मुझे आभास हुआ
फिर देखते देखते
छल छल जलधारा बरसने लगी
जोरदार बूंदों कि मार से
धरती गीली हो गयी
रस्ते के करीब पेड़ों के साथ साथ
उसने उस हवा को भी नही छोड़ा
मन के अंदर छुपी वो याद
हल्के से उस बौछार ने जगा दी
अनजान हाथों ने मेरी किताब बंद कि
मन भूतकाल में ऐसे गुम हो गया
गीला मिट्टी कि सुगंध साथ
उसकी बीती यादों ने खुशबू फैला दी
पहली बरसात
इसलिये यादगार रहती है
क्योंकि उसका पहले प्रेम से
खूब नजदीक का रिश्ता होता है
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
में पूर्व प्रकाशित -सर्वाधिकार सुरक्षित
बालकृष्ण डी ध्यानी
0 टिप्पणियाँ