बस वो चेहरे
हमने अपने पलकों के पीछे समंदर को छुपा रखा
छेड़ो ना लहरों को कंही तुमको वो बहा ना ले जाये
गुमनाम खो गया
खामोश चीख पुकारती रही
रंग बदलते रहे बस वो चेहरे
उनका भाव मेरी समझ से परे
अपना अपना सा लगा था
वो अपने में लगा रहा
गुमनाम खो गया मै
खामोश चीख पुकारती रही
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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