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तेरी तरनुम में


तेरी तरनुम में

तेरी तरनुम में भीगे हम इस तरंह
होश ना रहा अब तो आक़िबत तक हमें ये खुदा

आग़ाज था अंत का उस आंच के सरर में
मोहब्बत कहते हैं लोग वो मरज़ हमको हुआ

आंचल किनारे कोने ने रुसवाईयाँ से गुफ़तगू कि
आफ़त का वीराना मेरा लिये वो आबाद हो गया

अख्ज़ फ़रिश्ते दबोचने आ गये दोजख से मुझे
अदम रहा मैं अपने आखरी अन्जामे सफर तक

तेरी तरनुम में भीगे हम इस तरंह
होश ना रहा अब तो आक़िबत तक हमें ये खुदा

एक उत्तराखंडी

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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