… वो प्रेम है
सवेरे आँखें खोलने से पहले
जिसका चेहरा को देखने का मन होता … वो प्रेम है
मंदिर में भगवान के दर्शन करते हुये
जिसका पास होने का अहसास होता है … वो प्रेम है
जिसके कंधे पर सर रख कर
पुरे दिन की थकान दूर हो जाये ऐसा लगता है … वो प्रेम है
जिसके गोद में सर रख कर
मन खुला खुला सा होने लगता है … वो प्रेम है
खुद को कितना भी दर्द हो
लेकिन जिस के ये दिल ख़ुशी माँगता … वो प्रेम है
जिस को लाख भुलाने मन करता है
पर उसे वो भूल नही पाता है … वो प्रेम है
परिवार के फोटो में माँ पिताजी के संग
जिसका फोटो होना चाहिये ऐसा लगता है … वो प्रेम है
वो प्रेम है जिसकी भूल में गुस्सा
नही बस प्यार आता है … वो प्रेम है
ये पंक्तियाँ पड़ते समय प्रत्येक
पंक्ति में जिसकी याद आयी तुम्हे … वो प्रेम है
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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