मै अतृप्त अब भी
मेरे खोये...... रोये जज्बात में लगी है आग .......२
आ देख ले मेरे पहाड़ों में मिलेगी मेरी वो पड़ी बुझी राख
अब भी जल रहे हैं वो ख्वाब जो कभी देखे थे मैंने
अकेले अकेले ही वो अब भी संग मेरे हैं चल रहे
मेरे खोये...... रोये जज्बात में लगी है आग .......२
आ देख ले मेरे पहाड़ों में मिलेगी मेरी वो पड़ी बुझी राख
उजाड़ा बंजर सुखा उखड़ा सा अब भी मैं पड़ा यंहा
प्यासा सदियों से मैं अतृप्त अब भी तड़प रहा यंहा
मेरे खोये...... रोये जज्बात में लगी है आग .......२
आ देख ले मेरे पहाड़ों में मिलेगी मेरी वो पड़ी बुझी राख
दहका था कभी वो लहका था उत्तराखंड आंदोलन में
पर जो सोचा था ना पाया ना मिल सका अब भी मुझे
मेरे खोये...... रोये जज्बात में लगी है आग .......२
आ देख ले मेरे पहाड़ों में मिलेगी मेरी वो पड़ी बुझी राख
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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