इस बार होली में
हर एक एक के मैंने रंग देखे
रंग में मिले हमने कई बिखरे रंग देखे
मिले जैसे रंग घुले होली में
ना मिले रंग कभी उस चोली में
एक रंग है अकेला आदम का
मन बदले उस मन कई रंग दबे दिखे
वैसे तू रंग है शून्य इस भ्रमांड में
भ्रान्ति कभी उल्हास में वो घिरे पड़े
कभी ख़ुशी के कभी दुःख के रंग
कभी उस पानी कि बौछार में वो बहे
ना दिखे रंग गरीबी के किसी को
आँखा होकर भी वो अकेले लुप्त रोये
चाहूं ऐसे रंग इस होली में अब
ना उतरे सारी उम्र तेरे तन मन
मिले दिल से दिल तन से तन
ऐसा भाई चारा रहे मेरे वतन
हर एक एक के मैंने रंग देखे
रंग में मिले हमने कई बिखरे रंग देखे
मिले जैसे रंग घुले होली में
ना मिले रंग कभी उस चोली में
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
में पूर्व प्रकाशित -सर्वाधिकार सुरक्षित
बालकृष्ण डी ध्यानी
0 टिप्पणियाँ