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हम अपने में लगे रहे


हम अपने में लगे रहे

हम अपने में लगे रहे यूँ
नजारों को दर किनारा कर दिया
सागर ने अपना दर बड़ा दिया
पर्वत ने अपना कद घटा दिया
हम अपने में लगे रहे

कुछ इशारे कर रही थे वो हमें
हम ने उस पेड़ को ही जड़ से उखाड़ दिया
गर्मी बहुत बड़ गयी है घर घर में
हम ने वातानाकूलित यंत्र लगा दिया
हम अपने में लगे रहे

आराम कैसे मिले हम को अब
ये सोचने में पूरा जीवन व्यर्थ गँवा दिया
जीवन चक्र को घूमना था गोल गोल
हमने उसका रास्ता ही मोड़ दिया
हम अपने में लगे रहे

अब पृथ्वी कम पड़ने लगी है अब हमें
हम ने अब अंतरिक्ष को ताकना शुरू कर दिया
अब भी वक्त है खुद को जान ले पहचान ले
अपने नही प्रकृति के बारे में तो सोच ले
हम अपने में लगे रहे

हम अपने में लगे रहे यूँ
नजारों को दर किनारा कर दिया
सागर ने अपना दर बड़ा दिया
पर्वत ने अपना कद घटा दिया
हम अपने में लगे रहे

एक उत्तराखंडी

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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