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किसी के मन में क्या है


किसी के मन में क्या है

किसी के मन में क्या है
कोई ना जाने ना .......२
रहता है वो उसे बुनने
जो सपने थे उसे चुनने
किसी के मन में क्या है
कोई ना जाने ना .......

तह ना लगा सकता कोई
वो अताह समंदर का गोता
विचरण में उड़ा रहता है
मनन में यूँ लगा रहता है
किसी के मन में क्या है
कोई ना जाने ना .......

तरंगे है कि उठती रहती
सतत वो मचलती रहती
मिश्रित होती है एक दूजे में
विचारों कि वो गोस्ठी करती
किसी के मन में क्या है
कोई ना जाने ना .......

अकेले में वो लगा रहता है
जाने क्या सोचा करता है
निर्माण या अविस्कार होगा
किसी शब्द का अब संभव है
किसी के मन में क्या है
कोई ना जाने ना .......

किसी के मन में क्या है
कोई ना जाने ना .......२
रहता है वो उसे बुनने
जो सपने थे उसे चुनने
किसी के मन में क्या है
कोई ना जाने ना .......

एक उत्तराखंडी

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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