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आज रस्तों पर चलते चलते


आज रस्तों पर चलते चलते

आज रस्तों पर चलते चलते
एकांत से निकल भीड़ भाड़ के रस्ते
हरयाली छोड़ उजाड़ के पथ पे
कौन दिशा है और किस लक्ष पर

आज रस्तों पर चलते चलते
एकांत से निकल भीड़ भाड़ के रस्ते

पूछों किसको उत्तर कौन देगा
अपने मन अपने अंतर कौन टटोलेगा
पहले चलता था शांत वातावरण
अब भागम भाग और शोर का आवरण

आज रस्तों पर चलते चलते
एकांत से निकल भीड़ भाड़ के रस्ते

ऊँची मीनार कटे पहाड़ों के पत्थर
चार दिवारी में घुट गया वो गांव के समंदर
चिलाती है नदियां सिसक सिसक कर
कंहा फंस गये हम इन रास्तों पे चलकर

आज रस्तों पर चलते चलते
एकांत से निकल भीड़ भाड़ के रस्ते

अकेला था जब मै थे सब मिलकर
साथ हैं सब पर अकेले एक ही पथ पर
एक एक कर सब खत्म हो जा रहा है
आँखें हो कर भी क्या हमे नजर आ रहा है

आज रस्तों पर चलते चलते
एकांत से निकल भीड़ भाड़ के रस्ते
हरयाली छोड़ उजाड़ के पथ पे
कौन दिशा है और किस लक्ष पर

एक उत्तराखंडी

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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