अपनी तकलीफों को खुद ही छेड़ो मै
अपनी तकलीफों को खुद ही छेड़ो मै
छेड़ चुके हैं जो तार उसको कैसे छोड़ों मै
अपनी तकलीफों को खुद ही छेड़ो मै
उजाला घना घना अंधेरों ओर कैसे मुंह मोड़ो मै
उस जलते दीपक के तले काले साये को कैसे छोड़ों मै
अपनी तकलीफों को खुद ही छेड़ो मै
हर कदम कदम में कोई मेरे साथ साथ चला था
उस भरोसे और उसके उस बंधन को कैसे तोड़ों मै
अपनी तकलीफों को खुद ही छेड़ो मै
अपनी तकलीफों को खुद ही छेड़ो मै
छेड़ चुके हैं जो तार उसको कैसे छोड़ों मै
अपनी तकलीफों को खुद ही छेड़ो मै
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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