मेरी बात ना सुनो
मेरी बात ना सुनो
मै कुछ भी कह देता हूँ
सूरज को चाँद मै कह दूँ
अब मै रात को दिन कहता हूँ
मेरी बात ना सुनो
मै कुछ भी कह देता हूँ
सच्चा यंहा पर मरता है
झूठा सर पर अब ताज पहनता है
आखिर कि सोचता अब कौना है
सब आज बस आज में जीते हैं
मेरी बात ना सुनो
मै कुछ भी कह देता हूँ
किसी कि कौन यंहा सुनता है
बस वो अपने में लगा रहता है
राग अलापता रहता है
बेसुरा अब उसे सारा जग लगता है
मेरी बात ना सुनो
मै कुछ भी कह देता हूँ
सूरज को चाँद मै कह दूँ
जब मै रात को दिन कहता हूँ
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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