मेरी वो भूल थी
मेरी वो भूल थी
जिसे उम्रभर कबुल ना कर सका
तड़पता रहा जिंदगी भर
मोड़कर दोबारा ना मै लौट सका
मेरी वो भूल थी
जिसे उम्रभर कबुल ना कर सका
छोड़कर गया था अपनों को
किनारा करके उन सारे रिश्तों को
आखरी पड़ाव में अब वो क्यों महसूस होता है
दिल में एक कील सा वो अब चुबता है
मेरी वो भूल थी
जिसे उम्रभर कबुल ना कर सका
अंग मे काँटों सा सहर उठता है
अकेले में वो दर्द क्यों कर कहरता है
बिता चेहरा यूँ आँखों में घूमता है
अपने से ही अब वो प्रश्न पूछता है
मेरी वो भूल थी
जिसे उम्रभर कबुल ना कर सका
वजूद खोया मेरा गुमनामी में
जवानी चित्र उभरा आया कब्रजानी में
ख़ाक मचलती है अब क्यों वो
मिल जाने को बेस्रब पहाड़ों के पानी में
मेरी वो भूल थी
जिसे उम्रभर कबुल ना कर सका
तड़पता रहा जिंदगी भर
मोड़कर दोबारा ना मै लौट सका
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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