वो घर मेरा यूँ दूर खड़ा
दर खुला था ना चल सका
दो कदम ना बढ़ सका
वो घर मेरा यूँ दूर खड़ा ……२
ऑंखें भीगे गीले आंसूं
पर वो ना रो सका,हँसते ही बस वो रहा
वो घर मेरा यूँ दूर खड़ा ……२
पीछे पीछे वो आया मेरे
दूर रहा मै उसके निगाहों के पास रहा
वो घर मेरा यूँ दूर खड़ा ……२
यादों का वो आकाश मेरा
साथ साथ मेरे वो यूँ ही चलता रहा
वो घर मेरा यूँ दूर खड़ा ……२
परछाई मेरी मुझसे कहती रही
अनसुना कर मै क्यों चला
वो घर मेरा यूँ दूर खड़ा ……२
दर खुला था ना चल सका
दो कदम ना बढ़ सका
वो घर मेरा यूँ दूर खड़ा ……२
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
में पूर्व प्रकाशित -सर्वाधिकार सुरक्षित
0 टिप्पणियाँ