आ जा फ़िर ठगने को
रोज सुबह आती है पहाड़ में
सात रंग बिखेरती आ के वो पहाड़ में
रोज सुबह आती है पहाड़ में
दूर से दिखता वो कितना सुंदर
पास आ यंहा चल देखे घुस के अंदर
रोज सुबह आती है पहाड़ में
जो दिखा तना तना खड़ा हुआ
अंदर अकेला खड़ा दिखा बिखरा हुआ वो
रोज सुबह आती है पहाड़ में
ना तुम समझोगे ना जान पाओगे
एक दिन गुजर के तुम तो चले जाओगे
रोज सुबह आती है पहाड़ में
मेरे अपनो को ऐसे हि रहना है
भोले हैं वो आ जा फ़िर ठगने को
रोज सुबह आती है पहाड़ में
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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