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अंखंड-विकट कठिन शब्दों से



अंखंड-विकट कठिन शब्दों से

अंखंड-विकट कठिन शब्दों से ना वार करूँ
समझ में आये ऐसे शब्दों को बस मै दुलार करूँ

भाव मन ही मन आंदोलित हो जन जन के
ऐसी कविता और रचना का मै निर्माण करूँ

बदलाव आना चाहिये खुद ही खुद में पहले
चलो साथ तुम्हरे उस कल्पना का निर्माण करुँ

पग ऐसा पड़े पग पग अचम्भित रह जाये ये जग
छंदों और लेखों में वीररस का अब मैं संचार करूँ

मकसद मेरा बस सोये मन जन को है जगाना
विश्व पटल अलग भारत की छवि विराजमान करूँ

अंखंड-विकट कठिन शब्दों से ना वार करूँ
समझ में आये ऐसे शब्दों को बस मै दुलार करूँ

एक उत्तराखंडी

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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