ऊँची ऊँची मीनारों के
ऊँची ऊँची मीनारों के
कौन से खोलों में हम रहते हैं
ऊँची ऊँची मीनारों के
कौन से खोलों में हम रहते हैं
तकिये वंहा भी गीले होते थे
तकिये यंहा भी गीले होते हैं
ऊँची ऊँची मीनारों के
कौन से खोलों में हम रहते हैं .............
घोंसला एक बनया था
यंहा से दूर कंही उसे बसाया था
तिनके तिनके ले सहार चोंच से
उस से हमने स्नहे बड़ा लगाया था
पंख सशक्त होते ही
ऊँची ऊँची मीनारों के
कौन से खोलों में हम रहते हैं .............
एक वक्त ऐसा था
दिल उसका दरवाजा खोला सा था
अब बंद है वो चार दिवारी में
घुंटी है वो घुटन उसकी पेशानी में
बस करनी का फेरा था
ऊँची ऊँची मीनारों के
कौन से खोलों में हम रहते हैं .............
दबी तकलीफ उसकी
सपनों घिरी तक़दीर उसकी
दर्द,कसक बिछड़ने का उसको भी
मजबूरी, बेड़ी बंधी मोड़ती राहों में
अपनों कि आहों में
ऊँची ऊँची मीनारों के
कौन से खोलों में हम रहते हैं
ऊँची ऊँची मीनारों के
कौन से खोलों में हम रहते हैं
तकिये वंहा भी गीले होते थे
तकिये यंहा भी गीले होते हैं
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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