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खाली खाली


खाली खाली

होने लगे हैं खाली खाली
मेरे पेड़ मेरे पहाड़ मेरी नदीयाँ सारी
रहा ना इस गढ़ का कोई सवाली
छोड़ के चली जा रही कंहा इसकी जवानी
होने लगे हैं खाली खाली
मेरे पेड़ मेरे पहाड़ मेरी नदीयां सारी

ना समझे है मेरे मूल निवासी
क्यों छाई दूर तक शांत और ये गहरी उदासी
बैठे सदियों से इंतजार की वो राहें
खाली खली हैं बस वो मेरी दो निगाहें
होने लगे हैं खाली खाली
मेरे लोग मेरे अपने मेरे वो सपने

छटपटा रहा हूँ मैं अपने अस्तित्व को
कर दिया है अपनों ने ही अकेला मेरे वजूद को
खून की धार बही थी कभी मेरे अपने शहीद हुये थे तभी
उनके सपनों संग मै अब भी खाली खाली
होने लगे हैं खाली खाली
मेरे लोग मेरे अपने मेरे वो सपने

होने लगे हैं खाली खाली
मेरे पेड़ मेरे पहाड़ मेरी नदीयाँ सारी
रहा ना इस गढ़ का कोई सवाली
छोड़ के चली जा रही कंहा इसकी जवानी
होने लगे हैं खाली खाली
मेरे पेड़ मेरे पहाड़ मेरी नदीयां सारी

एक उत्तराखंडी

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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