चलों फिर उसी रस्ते में
हल्का हल्का सा दर्द अब भी उठता है सीने में
चाहा होती है रोज की मै चलों फिर उसी रस्ते में
हल्का हल्का सा दर्द अब भी उठता है
बोलती रहती हैं वो रोज राहें मुझको
कदमों को आदत सी हो गयी अब उस और चलने में
हल्का हल्का सा दर्द अब भी उठता है
अपने बढ़े इरादों को क्यों कर मै जाने रोक लेता हूँ
सवाल उभरता हर वक्त फिर अपने में दफन हो जाता है
हल्का हल्का सा दर्द अब भी उठता है
उसकी जुदाई वो रुसवाई जीने नही देती अब तो
कैसे कहूँ की किस हाले सितम से मै गुजरता हूँ
हल्का हल्का सा दर्द अब भी उठता है
हल्का हल्का सा दर्द अब भी उठता है सीने में
चाहा होती है रोज की मै चलों फिर उसी रस्ते में
हल्का हल्का सा दर्द अब भी उठता है
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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