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मिल ते हैं आंसूं


 मिल ते हैं आंसूं

मिल ते हैं आंसूं हर जगह अब तो इतना
किसी से अब कोई शिकवा नही होता
मिल ते हैं आंसूं हर जगह अब तो

रोज छूटती है वो मोती बन के आँखों से
अब उसके टूटने का अहसास नही होता
मिल ते हैं आंसूं हर जगह अब तो इतना

खारा जल समाया मुझ में इस कदर इतना
मीठे जल का मुझ पर अब तो असर नही होता
मिल ते हैं आंसूं हर जगह अब तो इतना

मिल ते हैं आंसूं हर जगह अब तो इतना
किसी से अब कोई शिकवा नही होता
मिल ते हैं आंसूं हर जगह अब तो इतना

एक उत्तराखंडी

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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