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गमले में खिलते फूल को हँसते देख कर


 गमले में खिलते फूल को हँसते देख कर

गमले में खिलते फूल को हँसते देख कर कुछ यूँ शब्द उभरे हैं
टेहरी की झील के तल में दबे दबे मेरे अहसास अब भी बाकी हैं

एक आधे वक्र में घिरा वो घेरा बंधा रखा उसने मेरा अति वेग
हजारों अश्व ऊर्जा संचारित कर अंतर मन क्यों शून्य विहीन

पल पल रिक्त होता पल हर पल बन जाता वो एक नया कल
मेरा बिता कल आने वाला कल क्यों लगता पर एक समान

बीते दिनों की बस स्मृतियाँ बाकी रह गयी है अंकित मन में
आने वाले दिनों में वर्तमान के खाली पलों को देख वो डर रहा है

गमले में खिलते फूल को हँसते देख कर कुछ यूँ शब्द उभरे हैं
टेहरी की झील के तल में दबे दबे मेरे अहसास अब भी बाकी हैं

एक उत्तराखंडी

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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