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विचलित है मन



विचलित है मन

विचलित है मन
ना जाने आज फिर क्यों
देख नजारे
क्यों ना समझे हम उनके इशारे

विचलित है मन
ना जाने आज फिर क्यों

अपनी ही वो प्रेरित भूल है
चाँद ,मंगल जाकर मिली क्या धूल है
रहते हैं जंहा उसको भुला जी मैं
उसकी दुर्दशा में सबसे बड़ा मेरा हाथ है

देख नजारे
क्यों ना समझे हम उनके इशारे

मृत वो होता चला है
पर फिर भी विचलित ना मेरा पथ है
स्वर्गवासी जब वो हो जायेगा
बोल अब मेरा क्या मोल है

विचलित है मन
ना जाने आज फिर क्यों

प्रस्तुत छोटी सी तेरी जिंदगी
सांसों की गति जब तक चलायमान रही
पेड़ काट काट कर तू
गत हो जायेगी की कभी थी कोई पृथ्वी

विगत ना हो पाया क्यों जो तुझे यंहा
सचेता है क्या तेरा भी मन कभी तुझे अकेले में
फिर कदम बड़ा साथ मेरे रोक ले
पर्यावरण के होते इस विनाश को

विचलित है मन
ना जाने आज फिर क्यों
देख नजारे
क्यों ना समझे हम उनके इशारे

एक उत्तराखंडी

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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