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कोई था वो



 कोई था वो

बिखरा गिरा आज यंहा
अपने से ही टूट कर

जमीं मिली ना आसमान
किनारों का ना ये समा

बिना लड़े ही छूट गया
वो हिस्सा मुझ संग रूठ गया

गिरते रहे वो मुझ में कँही
बाँध रखा वो खुल गया

कोई था वो
जो मुझ में वो दूर चला

बिखरा गिरा आज यंहा
अपने से ही टूट कर

एक उत्तराखंडी

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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