कंही खुद से ना खो ना जाऊं मै
उड़ते धुँये के अंदर
बहती धार में बहकर
मय तेरे जाल में फंसकर
इस हाल में कैद ना हो जाऊं मै
कंही खुद से ना खो ना जाऊं मै
देख मुझे बहुत कुछ करना है
मेरे माँ के सपनो में है जीना
आया हूँ इस जीवन में
ना जाना चाहता हूँ व्यर्थ खो कर
कंही खुद से ना खो ना जाऊं मै
मान दिल तो टूट गया
तेरा प्यार तुझ से रूठ गया
दिल एक के लिए दस को नारज ना कर
तेरी गली नही यह तो अपने घर को चल
कंही खुद से ना खो ना जाऊं मै
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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