पत्थर पत्थर बोल रहा
पत्थर पत्थर बोल रहा
मंदिर बैठा डोल रहा
घर घर बैठा पत्थर
मन द्वार बैठा वो ऐंठ कर
स्वार्थ हो तब ही पूजा जाता
नत हो तब झुक वो जाता
आँखें खुली हो कर
बैठा क्यों ना जाने बंद कर
जो दिख जाता मुझको
मैं वो यूँ ही कह जाता
कहे को ना लो मन अंदर
दिल बोलता है बोल जाता
फिर भी अब भी
पड़ोस में एक भूखा सो रहा
पत्थर पत्थर बोल रहा
मंदिर बैठा डोल रहा
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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