हँस ने से पहले रोना सीख ले
हँस ने से पहले रोना सीख ले
चलने से पहले गिरना सीख ले
घर से निकलते वक्त आँखें बंद कुछ पल सोच ले
माँ के आँचल पे कुछ और पल जा जी ले
शक्ति तुझ में बसी वो जननी की है तेरी
हर पल साथ रख उसे होगी सफल हर करनी तेरी
भूले से ना भूल ना उसे कभी अपनों में से उसे
तेरे सपनों की वो उड़न तस्तरी है तेरी
मैंने लिख दिया ऐसा मत सोच लिखने के लिये
माँ का हाथ इस शीश पर था तो मैंने भी सब कुछ पा लिया
शीश झुका रहता अब तो सदा उन चरणों में मेरा
यूँ ही आशीष बरसाते रहना इस शीश माँ पिताजी मेरे
मैं तो वक्त हूँ चला गया वापस ना आऊंगा
पर समझ गया तू तो तेरे साथ साथ चलता चला जाऊँगा
बुड़पे में उन्हें बेसहार ना छोड़ जाना कभी भरोसे मेरे उन्हें
मैं तो फिर गुजरा वक्त हूँ वही कहानी फिर दोहराऊंगा
हँस ने से पहले रोना सीख ले
चलने से पहले गिरना सीख ले
घर से निकलते वक्त आँखें बंद कुछ पल सोच ले
माँ के आँचल पे कुछ और पल जा जी ले
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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