किस सोच में
किस सोच में उलझा है ,तू किस सोच में उलझा है
क्या तु ने पाना,क्या तु ने खोना
किस सोच में उलझा है ,तू किस सोच में उलझा है
क्या तेरा आना क्या चले जाना
क्यों तुझे लेना है क्या यंहा से तुझे ले जाना
ना तेरा ठिकना है, ना मेरा ठिकना है वक्त तू बस एक बहाना है
किस सोच में उलझा है ,तू किस सोच में उलझा है
क्या तु ने पाना,क्या तु ने खोना
किस सोच में उलझा है ,तू किस सोच में उलझा है
एक हलचल है बस पल पल है
सुख दुःख क्या है बस बहता जल है जीवन सार सारा छुपा इसमें
ये ही तो पूर्ण सत्य है ना कोई समझा है , ना कोई इसे समझ सकेगा
किस सोच में उलझा है ,तू किस सोच में उलझा है
क्या तु ने पाना,क्या तु ने खोना
किस सोच में उलझा है ,तू किस सोच में उलझा है
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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