दो रास्तें
दो रास्तें सामने मेरे
कौन से राह पर अब मै चलों
मुश्किल में मै परेशां भी मै
जाअों किधर हैंरा भी मै
ना बढ़ते कदम सांसों का दम
भरते रहे भरते रहे
सुख भी मेरे दुःख भी मेरे
कौन से पल बता अब मै चुनों
आंसूं हंसे आँखे नम
सरगम की धुन कैसे गुम
चुनों किसे कुछ ना छूट जाये
देखों दोनों को में एक भी ना रूठा जाये
आता है कल बह जाता है कल
बहते कल में से किसको भरों
तस्वीर मेरी बड़ी बेरंग
इन उजाड़ों में कैसे भरो रंग
देख एक भी रंग ना टूट जाये
वो सपना मेरा खिलता जाये
दो रास्तें सामने मेरे
कौन से राह पर अब मै चलों
ध्यानी प्रणाम
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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