वो अन्धेरा
वो अन्धेरा कब तो छटेगा
वो सुरमई उजाला कब तो फटेगा
आशा का दीप जला ले मनवा
निराशा तू दूर भगा ले
कब तक ये भाग्य यूँ दिल छलेगा
महेनत रंग एक दिन निखरेगा
हैराना ना हो इस जग हैरानी से
सब निर्भर अपनी मेहरबानी से
ना लेना मन सहारा किसी का
तू बन जा किनार सभी का
वो अन्धेरा कब तो छटेगा
वो सुरमई उजाला कब तो फटेगा
ध्यानी प्रणाम
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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