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ना जाने



ना जाने

माना की मै इजहार नही कर पाता
खुल के प्यार नही कर पाता
तुम ही हो इस दिल में बसी
फिर भी तुम्हे मै
ये दिल चिर के नही दिखा पाता
ना जाने
फिर भी तुम्हें ऐसा क्यों लगता है
मै तुम से प्रेम नही करता

रहता हूँ अकेला जब भी
बस तेरे यादों में घिरा रहता हूँ
होती जब तुम पास मेर
बस मै तुम्हरे बातों में घिरा रहता हूँ
तकलीफ ना हो तुम्हे थोड़ी भी
इन ही विचारों में डूबा रहता हूँ
ना जाने
फिर भी तुम्हें ऐसा क्यों लगता है
मै तुम से प्रेम नही करता

इतने मौसम बीत गये
साथ साथ तुम्हरे आस पास
फिर भी तुम सदा इस दिल के साथ
और वो ही संकोचित मन पास मेरा
उसमे भरा तुम्हरे लिये ही ढेर सारा प्यार मेरा
करता है अब भी डर डर के इजहार
तुम्हरे जन्मदिन पर मेरा तोहफा
संकोचित कविता का उपहार
ना जाने
फिर भी तुम्हें ऐसा क्यों लगता है
मै तुम से प्रेम नही करता

माना की मै इजहार नही कर पाता
खुल के प्यार नही कर पाता
तुम ही हो इस दिल में बसी
फिर भी तुम्हे मै
ये दिल चिर के नही दिखा पाता
ना जाने
फिर भी तुम्हें ऐसा क्यों लगता है
मै तुम से प्रेम नही करता

ध्यानी प्रणाम

एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
में पूर्व प्रकाशित -सर्वाधिकार सुरक्षित
बालकृष्ण डी ध्यानी
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