दिल क्यों ?
दिल क्यों तो रोता है
जाने क्या डर है क्या वो खोता है
पहाड़ों की ढलती शाम देख
वो लकड़ी चूल्हे जलने से रोती है
हर चेहरे पर मौखोटा चढ़ा है
देह में बस परदेश प्रेम जड़ा है
क्या कमी थी इन काँटों में
बिना चपल तेर पैरों से जो जुड़ा है
लेप है वो तेरे अंतर जा लिपटा है
माया ने भेद तेरे मन में उपजा है
हारा है तो अपने कारणों से ही
लालच ने तुझे दो पाटों बीच पटका है
दिल क्यों तो रोता है
जाने क्या डर है क्या वो खोता है
पहाड़ों की ढलती शाम देख
वो लकड़ी चूल्हे जलने से रोती है
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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