सिंकुली सै गैनी
गैनी गैनी
बिसरी गैनी
अपरा अपरा
आच सिंकुली सै गैनी
कोई नि हेरदु
रात का गैंणा
जून ते थे
सब बिसरी गैना
सुबेर कु उठानु
लग्युं वै थे घै की घेर
ध्याड़ी छूटी जाली
भूकी रै जाला फेर
गोळ मौळ
सब आच व्हैगैनि
नीरजक पाड़ि
सिंकुली सै गैनी
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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