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शाएरी शाएरी अब तुम्हारी शाएरी,

शाएरी शाएरी अब तुम्हारी शाएरी,

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देख वो अंधेरा हो रहा है
उजाला अपने को क्यों कर सौंप रहा है
हार कर ना बैठे तू ऐसे लड़ उससे अब ध्यानी
आशा की एक तो तू बाती जलकर देख
तुझे वो दूर से सवेरा देख रहा है

ध्यानी
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चलो बैठे बैठे आज भी इतवार हो जाये
आज शनि है पर उसकी ही बात हो जाये
काम की बात कोई नही करता यंहा ध्यानी
कल छूटी है इसलिए सातों दिन आराम हो जाये

ध्यानी
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चल उस सीढी में चढ़े जा उस सूरज से मिलें
जो आता है सुबह गुम हो जाता है काली रात में
पूछना है मिलके उसे दिख जाती है क्या मेरी माँ राह में
दिख अगर जाये जा के चंदा को बताना माँ भूल गयी है
सूरज चांदा तेरी लोरी गाकर मुझे अब सुनाना सुलाना

ध्यानी प्रणाम
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करवट ले रही चादर तड़प तड़प
हो रहा हसर बिस्तर पर सहर सहर
रात गुजरी थी मेरी उस कोने में
नींद नही आती अब अकेले सोने में

ध्यानी
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फिर आज घर के छत पर बैठ उस काले ने कांव कांव किया
फिर उस अँधेरे ने सवेरे की ओर चमकते उजाले को छोड़ दिया
फिर सर दौड़ी बूढ़ी काठी उस गाँव की मेढ़ की ओर जोर से
फिर उस सुनी डगर और गुमसुम सड़क ने उसे निराश किया

ध्यानी
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बस हम अपनी परछाईयों में ही यूँ खोये रहे
कभी जागे रहे हम ध्यानी कभी हम सोये रहे

ध्यानी
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पहड़ों का देख ले वो गुलदस्ता
रोते हुये भी दिखता है वो कितना हँसता

ध्यानी
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उन बूढी आँखों को सहारा दे दे
चैन सुकून का तू एक किनार दे दे
देख करती इंतजार अब भी तेरा वो
जीने का तू उन्हें एक बहाना दे दे

ध्यानी

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हम तो अपने शीश सजाये बैठे हैं
कब पता भारत माँ के चरणों पर चढ़ जाये
पहाड़ी हूँ मैं पहाड़ में रहने वाला छिपा नही हूँ
जो गैरों की तस्वीर तले खुद ही दब जाये

ध्यानी

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हम तो खोये रहे दर्द में ये पहाड़ तेरे लिये
आँख भीगी नही थी की मेरा दिल रो दिया

ध्यानी
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अब ना उजड़े और वो जो खंडहर रह गया
उस में मेरे यादों का समंदर जो बह गया है
रिश्ते गीले सूखे होते कभी यंहा पर ध्यानी
अब बस कुछ दिन का और सफर रह गया है

ध्यानी
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लो फिर सुबह चली आयी है ध्यानी
घूम कर वो घटा फिर चली आयी है
घरोंदे में बैठे उन कबूतरों को देखकर
अपनों के लौट ने की उम्मीद फिर चली आयी है

ध्यानी
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देखो दाद ना देना ना ही वाह वाह करना
शेर समझ आ जाये तू उसमे खुद को देख लेना
आईना हूँ तेरा जो दिखेगा वो ही दिखाऊंगा
अँधेरे रोशनी कर नही तो मैं नजर ना आऊंगा

ध्यानी
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खुदा ऐसा ईलम ना किसको बख़्श देना
की वो खुद को ही ना अब खुदा समझ बैठे

ध्यानी
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अब तो खूंटे से बाँध रखी है हमने भी बुजर्गों की दो जोड़ियां
फक्र उनको हम पर अब भी वो समझे ये है हमारी नादानियां

ध्यानी
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देखो हमने अपने को इस तरह अपनों से आज यूँ छुपा लिया
वैसे तो हम खुली किताब थे पर आज खुद को रद्दी में बिकवा दिया

ध्यानी
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बंद करके रखा हमने अपने किवाड़ों को
नजर जो दौड़ाई थी हमने जब से उन मयखानों पर

ध्यानी
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देखती है वो उदास खिड़कियां दूर कंही
जी लेंगी यादों में ये दीवारें तू बता और कितने दिन

ध्यानी
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मैं समझ गया हूँ
यंहा बिसात हार की सजी है
हार नही मान सकता फिर भी मै
बिना लड़े ही अपने से

ध्यानी
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जब छोड़ के तेरी दुनिया को मै चला जाऊँगा ध्यानी
लगता है तुझे बस मै तन्हाईयों में ही याद आऊंगा

ध्यानी
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बस मै वक़्त को देखता रह गया ध्यानी
वो है की टिक टिक आगे ही निकलता रहा
रिश्तों की जुड़ी जंजीरें मुझ से ही अब बंधी है
उन को ही मै देखो अब तक जुड़ता रह गया
वो है की टिक टिक आगे ही निकलता रहा

ध्यानी
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जब सत्य तुम्हे डराता है
झूठ जब आसानी से बोला जाता है
समझ लो तुम्हरा पतन अब शीघ्र है
हर एक पन्ना वंहा लिखा जाता है

ध्यानी
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बस अपना बोझ उठाया और चल दिया
खत में रोशन यादें,नन्हें कन्धों पर भारी बस्ता धर दिया
लफ्ज़ का खेल था बुलंदी के बोझ तले दबा
एक थैला सीमेंट का मैंने अपने मकबरे पे लेप दिया
ध्यानी बस अपना बोझ उठाया और चल दिया

ध्यानी
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बस दिल ने कह ,मैंने बोल दिया
भाव दिलों का ना तोला,मैंने बस बोल दिया

ध्यानी
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मित्र तुझे पुकारों ,
साथी तुझे बुलाऊँ
यारा आवाज दे दे
सखा तू साथ दे
हितैषी ध्यान दे
मीत तू मिलाप कर दे ....... मेरे हर दिन हर वक्त के मित्रों के लिए

ध्यानी
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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