हे मानव
आज मौसम ने कहा ,तू भी गुनगुना ले जरा
भाव अपने मन का ,तू भी बतला दे जरा
आज मौसम ने कहा
मै तो लिख चुका हूँ ,तू भी लिख ले जरा
मेरे सुर में अपना सुर मिलाले जरा
लेकिन तू अब अलग राग अपना अलापने लगा
आज मौसम ने कहा
ठंडी हवा का जोर अब बहने दे जरा
शीत ऋतू के आगमन पर मुझे चहकने दे जरा
ऐसी क्या नाराजगी हुयी तू उष्णा है क्यों अब तक
मै क्या कहूँ हे मानव ये सब तेरा किया धरा
आज मौसम ने कहा
आज मौसम ने कहा ,तू भी गुनगुना ले जरा
भाव अपने मन का ,तू भी बतला दे जरा
आज मौसम ने कहा
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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