इस कदर
पत्तों पत्तों से बात हो जाये
कलियों और फूलों से आंखे चार हो जाये
हम तो प्यार करते हैं अपने पहाड़ों से इस कदर
चलो काँटों से भी बात हो जाये
वो बरसात की पहली बूंद वो मिट्टी की सुगंध
चलो उस ओर ही मोडे अपने कदम
जिस और बहारों से अपने दो दो हाथ हो जाये
उस छोड़े पथ गाँव से फिर प्यार हो जाये
वो याद इन आँखों सांसों में चढ़ी उतरी
लहू बनकर जिगर में उस ऐनक से ढलकी
उस अपनेपन अपने लोगों की बीच चला जाये
तेरे शहर की बैचैनी तन्हाई रुसवाई में और ना जिया जाये
पत्तों पत्तों से बात हो जाये
कलियों और फूलों से आंखे चार हो जाये
हम तो प्यार करते हैं अपने पहाड़ों से इस कदर
चलो काँटों से भी बात हो जाये
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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