जले हैं परदे हजार
जले हैं परदे हजार
दिल फिर भी बना बेजार
जाना क्या पाना चाहता है
थोड़ा तो सोच ले यार
जले हैं परदे हजार
आना और चले जाना
ये क्या काफी है मन रे
खुद को पहले संभल
फिर पुछ ले खुद से सवाल
घेरा तेरा खुद से खींचा हुआ
तू खुद उसमे ही फंसा
सुन ले कभी मन की पुकार
बाहें फैलाये खड़ा तेरा विचार
जले हैं परदे हजार
दिल फिर भी बना बेजार
जाना क्या पाना चाहता है
थोड़ा तो सोच ले यार
जले हैं परदे हजार
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
में पूर्व प्रकाशित -सर्वाधिकार सुरक्षित
बालकृष्ण डी ध्यानी
0 टिप्पणियाँ