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कब जाग्ला



कब जाग्ला

कब जाग्ला
कब जगा व्हाला
कब अपरा पहाड़ थे
कब ये अपरा समझला

नींदि इनि चढ़ीच
चौतरफा देक सियिंच
ह्युंद जनि जमीच
उकालु मा दाढीच

भैर ना भित्तर
गैर जनि व्हैगे छित्तर
उड़्ना बन तित्तर
जनि माया की छतर

पैल कैल बुलण
धैल कैल लगण
कुम्भकरण नींदि से
पैल कैल जगण

कब जाग्ला
कब जगा व्हाला
कब अपरा पहाड़ थे
कब ये अपरा समझला

एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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