रस मधुरस में एक रचना
अपने को ले कस और बस कस
रस मधुरस एक रचना
पन्नों पर आ उभर उभर
अपने को ले कस और बस कस
गन्ने का वो मीठा रस
ओखली में अपने सर को रख
अपने को ले कस और बस कस
नीम का वो कड़वा घोल
बस मीठा मीठा बोल
अपने को ले कस और बस कस
जिंदगी है एक सफर
रिश्तों पर पड़ेगा निर्भर
अपने को ले कस और बस कस
रस मधुरस एक रचना
पन्नों पर आ उभर उभर
अपने को ले कस और बस कस
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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