मेरा पहला प्रेम
मैं ना कहा सका मुझसे
की प्यार है तुमसे
ना शिकवा ना गीला तुमसे
जब ना कह सका खुद से
की प्यार है तुमसे
अपने में भी ना रहा
गैरों से भी ना कुछ कहा
ख्यालों को तुम्हारे
दिल में ना आने दिया
ना कह सका उन पलों से
की प्यार है तुमसे
ये अश्क बोलते रहे
अकेले चुप वो रोते रहे
वो रात भीगी भीगी सी
वो दिन मेरे अँधेरे रहे
आँख कहती रही
ये पलकें झपकती हुयी
की प्यार है तुमसे
मेरा पहला प्रेम चुप रहा
कुछ ना किसी से कह सका
ये सदियाँ बीत गयी
वो राज दबा सीने में कंही
उभर जाता है वो कभी कभी
मेरी कविताओं में कभी .............
मैं ना कहा सका मुझसे
की प्यार है तुमसे
ना शिकवा ना गीला तुमसे
जब ना कह सका खुद से
की प्यार है तुमसे
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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